Friday 26 December 2014

मॉल की सैर


देखो यार हम बड़े शहरों में रहने वाले लोग है, छुट्टी मिले तो उठ के रिश्तेदारो या दोस्तों के घर नी जा धमकते और ना ही शहर के किसी छोटे मोटे टॉकीज में या बगीचे के चहलकदमी करके आते है। भिया यार हम मॉल जाते है सीधा , क्या समझे ?
नी  समझे तो समझाते है, क्या है की छुट्टियों का मौसम चल रिया है और लोग बाग़  हिल स्टेशन, समुन्दर पे , या किसी रिसोर्ट में अपनी छुट्टियां मना रहे है और सब जगह के होटल मानो ओवरफ्लो हो रहे है। और तो और सडको पे भी जाम लगा पड़ा है तो जो जगह एक दिन में घूम के आ सको वहां भी नी जा सकते। यही बात इस क्रिसमस पे हमने अपनी बेग़म साहिबा को समझाई, जो वो समझ भी गयी(शायद)। लेकिन अब छुट्टी के दिन सारा दिन घर बैठ के बीवी की गालियां भी तो नहीं सुन सकते ना। हमने यह भी समझाया की अभी भीड़ भाड़ वाली जगहों पे नहीं जा सकते, आतंकवादियों का हमला हो सकता है इस लिए आराम से घर पे ही तुम दाल-बाटी बनाओ और अपन टीवी देखते है । इसके बाद तो जो हमला हुआ हम पे उससे तो आतंकवादियों का हमला ही हमें बेहतर लगा सो हम चुपचाप अपनी दुपहिया पे बेग़म को बिठा के निकल पड़े।

अब साब बड़े शहरों में घूमने के लिए ले देकर मॉल ही होता है जहाँ जाके आटे-दाल के भाव पता करके आ जाओ बस।  हम भी गए, क्रिसमस का दिन था, सड़के जाम शहर में भी थी, शायद आधा शहर हमारी तरह होटल का ओवरफ्लो देख के कही नहीं गया था। मॉल पहुंचे तो गेट के बाहर इतनी भीड़ थी मानो भीतर माता रानी का भण्डारा चल रहा हो। ऐसी भीड़ तो यार भिया हमने अपने इंदौर में १५ अगस्त और २६ जनवरी को चिड़ियाघर के बाहर ही देखी थी अब तक क्योंकि साल के इन २ दिनों को मुफ्त एंट्री होती है । जैसे तैसे हिम्मत करके हम अपनी दुपहिया और उसपे बैठी हमारी बेग़म को धकेलते हुए पार्किंग के गेट तक पहुंचे और २० रुपये का टिकिट कटा के तलघर में जगह ढूंढ के दुपहिए को टिका दिए।

मॉल के अंदर घुसे तो पाया की  जिधर देखो उधर लोगो की भीड़ ही भीड़, वाइफ बोली " लो देखो जब सारा शहर पहाड़ो पे, समुन्दरो पे घूमने गया तो यहाँ क्या ये भूत घूम रहे है ? " हमने थोड़ा झेम्प के कहा की भई शहर की पापुलेशन ही बहुत है क्या करे। आगे बढे तो देखते है की लोगो के हाथो में शॉपिंग की थैलियों की जगह कैमरा था, जिसे देखो वो अपने हाथो में कैमरा लिए क्लिक क्लिक किये जा रहा था, किसी के हाथो में अमेरिका से आने वाले दोस्तों से मंगाया हुआ सस्ता DSLR था तो किसी के हाथो में उन्ही अमरीकी रिटर्न दोस्तों से मंगाया हुआ  महंगा आईफोन था। इन सब कैमरामैन को देख के ऐसा लग रहा था की सब किसी जंगल में जानवरो के साथ अपनी फोटो खिंचाने आये हो या किसी दरिया किनारे बर्ड वाचिंग करने।  खैर सही भी था कुछ लोग सच में अपने लम्बे लम्बे ज़ूम कैमरों से "बर्ड वाचिंग" ही कर रहे थे। दिसंबर की ठण्ड और मॉल का AC भी किसी काम का न था, इतनी "हॉटनेस" बिखरी पड़ी थी मॉल में।

अपने हाथो में न तो शॉपिंग बैग था न कोई कैमरा, था तो सिर्फ अपनी इकलौती बीवी का हाथ और उसका प्यारा साथ, बस उसी को जकड़े हुए हम उस भीड़ भड़ाके में घूमते रहे। एस्कलेटर पर ऊपर चढ़ते हुए अचानक से एक अनाउंसमेंट हुआ " मि. रोहित आप जहाँ कहीं भी है तुरंत हेल्प डेस्क के पास आये यहाँ आपकी बीवी मिसेज़ नेहा आपका वैट कर रही है " और एक बार नहीं २-३ बार यह उद्घोषणा की गयी। हमें तो उस बेचारे रोहित पर तरस आने लगा की कही वो "बर्ड वाचिंग" के चक्कर में अपनी बीवी से भटक न गया हो, और भटक के अब मिल भी गया तो अब उसका घर पहुंच के क्या हाल होगा ? क्या वो सही सलामत घर पहुंच भी पायेगा, उसकी बीवी नेहा उसका क्या हाल करेगी ? यह सब सोच सोच के हमारे रोंगटे खड़े हो रहे थे और हमने अपनी बीवी का हाथ कस के पकड़ लिया। उसने एक प्यारी से स्माइल देते हुआ धीरे से कहा "हाउ रोमेंटिक …… आपने सरे आम मेरा हाथ यूँ पकड़ा", हमने भी वही स्माइल उन्हें लौटाते हुए हाँ में मुंडी हिला दी। उन्हें क्या पता की हमने इतना कस के हाथ पकड़ा इसके पीछे कोई रोमेंटिक ख्याल नहीं भयानक वाली फीलिंग थी। खैर आगे बढ़ते हुए दुकानो पे नज़र दौड़ाते हुए हलकी फुलकी बर्ड वाचिंग हमने भी कर ही ली।


इतना घूमने के बाद अब भूख सी लग पड़ी थी सो हमने सोचा क्यों न थोड़ा बहुत यहीं कुछ खा लें, हालांकि यहाँ मॉल का खाना होता तो अपने बजट से बाहर ही है पर फिर भी थोड़ा सा "चख" लेंगे। यही सोच के फ़ूड कोर्ट पहुंचे तो देखते है की यहाँ भी लोग ऐसे टूटे पड़े है दुकानो पे जैसे फोकट में बँट रहा हो, बैठने तक की जगह नहीं, जहाँ मिले वंही टिक के जो मिला वही ठूंसे जा रहे थे सभी। हमने "सब वे बर्गर" वाले के बाहर निचे बालकनी की रेलिंग की सीढ़ी पर लोगो को बर्गर खाते देखा तो इंदौर के अन्नपूर्णा और खजराना मंदिर की याद आ गयी, वहां भी ऐसे ही लोग सीढ़ियों पे बैठ के जो मिले वो खाते दिख जायेंगे। बस फर्क इतना सा है की वहाँ वो लोग जेब से एक फूटी कौड़ी नहीं निकालते और यहाँ यह लोग सैकड़ो रुपये देके खा रहे है।

थोड़ी ही देर में हम दोनो भी ऐसे ही रेलिंग की सीढ़ी पर बैठ कर अपना बर्गर खा रहे थे या यूँ कहे की "चख" रहे थे तभी एक और उद्घोषणा हुयी की "मिस्टर केशव रंजन आप जहाँ कहीं भी है तुरंत हेल्प डेस्क काउंटर पर आये, यहाँ आपकी वाइफ मिसेज़ कृति रंजन आपका वैट कर रही है"




नोट :  चित्र फ़ीनिक्स मॉल, पुणे के फेसबुक पेज से साभार लिए गए है। 


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