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Friday 2 June 2017

सुखी और सफल वैवाहिक जीवन के आधुनिक नुस्ख़े -1

सुखी और सफल वैवाहिक जीवन के आधुनिक नुस्ख़े

 अरे आप हंस क्यों रहे हो ? चुटकुला नहीं है। ऐसा होता है। वैसे सफल वैवाहिक जीवन होना अलग बात है, सुखी वैवाहिक जीवन होना दूसरी बात है और एक सुखी प्लस सफल का कॉम्बो वैवाहिक जीवन सबसे बड़ी बात है जो शायद आपको फिक्शनल सी लगे। लेकिन यकीन मानो सुखी, सफ़ल और ऊपर से वैवाहिक, ऐसा जीवन होता है इसी धरती पर होता है। झूट बोलू तो काला कुत्ता काटे (कुत्ता इसलिए क्योंकि काले कौवे आजकल हमारी लोकैलिटी में नहीं मिलते, वो पुराने लोग कहते है न कि  कौवा बोले तो अतिथि आ जाते है, इसीलिए अतिथियों के भय से हमने कौवो को मार भगाया, और अपने अपने घरो में कुत्ते पाल लिए है। )

 मुद्दे पर आते है, तो जनाब जिनका कट चूका है मतलब विवाह हो चूका है वो लोग ध्यान और मन लगा के पढ़िए और वो जिनकी बुद्धि अब तक सही सलामत है वो तो अवश्य पढ़े। अविवाहित इंसान सदैव ऐसा नहीं रहने वाला, क्योंकि किसी ने कहा है कि भारत में मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो विकासशील हो न हो विवाहशील जरूर है । आप कितने ही अच्छे तैराक क्यों न हो विवाह रूपी दरिया में आपने डूब ही जाना है एक दिन।

पुरातन काल में तो हमारे पूर्वजो ने जैसे तैसे अपने जीवन को सुखी और सफल बना लिया था किन्तु मॉडर्न युग में आपको अगर एक सुखी और सफल वैवाहिक जीवन जीने की कला सीखनी है तो अपने आसपास गौर से देखना शुरू कीजिये।

हमने भी अपने आसपास की चीजों का थोड़ा अध्ययन किया और गूढ़ रहस्य का पता पड़ा की सोशल मीडिया वाले आधुनिक काल में स्वयं के चुने हुए शत्रु के साथ कैसे जीवन बिताया जाये। जी हाँ दोस्तों, मैंने  हाल ही में जाना कि सोशल मिडिया के जरिये आप सिर्फ सरकार ही नहीं चला सकते अपितु घर गृहस्थी और परिवार भी चला सकते है।

कैसे ?

निम्नलिखित बिंदुओं को पढ़े और आत्मसात करे। आज सोशल मीडिया का जमाना है उसका भरपूर उपयोग ही आपको बैकुंठ धाम का सुख देगा।

१. बीवी को कभी भी फेस-टू -फेस हैप्पी बर्थडे न बोले, बल्कि फेसबुक पर एक घटिया से शायर की चुराई हुयी तुकबंदी के साथ जन्मदिन की शुभकामनायें दें। (इसके लिए मुझे संपर्क करे, हाथोहाथ तुकबंदी करके देंगे वाज़िब दाम पर) अपनी फेसबुक पोस्ट में बताएं दुनिया को की आप कितने खुशनसीब है जो आपको ऐसी (ऐसी मतलब, वो जैसी है वैसे नहीं लिखना है उसका उलट बहुत तारीफों के साथ लिखना है ) बीवी मिली है। खबरदार जो अगर आपने यहाँ सच का एक बूँद भी लिखा, तो बे-मौत मारे जाओगे। (इसकी जिम्मेदारी हम नहीं लेंगे)

२. जन्मदिन पर आप उसके कुछ पुराने अच्छे से (फ़िल्टर और मेकअप वाले ) फोटोज़ भी पोस्ट कर सकते है। यहाँ भी  यह ध्यान रहे की कोई ऐसा फोटो गलती से भी न पोस्ट हो जाये जिसमे फ़िल्टर न लगा हो या बिना मेकअप वाला फोटो हो।अगर आपसे ऐसा कुछ हो जाता है तो एम्बुलेंस को एडवांस में फ़ोन करके रखिये।


३. अच्छा, आपको उसके अच्छे फोटोज नहीं मिल रहे है तो बढ़िया मौका है रिश्ते को मजबूत करने का, तुरंत एक DSLR खरीद डालिये, ऑटो मोड में बीवी के धड़ाधड़ फोटोज निकालिये। जहाँ भी आप जाइये कैमरा लेकर जाइये। और इन फोटोज को अच्छे से डबल प्रोसेस करके बीवी को कहिये अपलोड करे। फिर आप अपने आप को टैग करे और फोटोज पर होने वाली लाइक्स का हाफ सेंचुरी, सेंचुरी, डबल सेंटरी इत्यादि सेलिब्रेट जरूर करे।

४ . बीवी के द्वारा शेयर की हुयी हर पोस्ट को Like करे खासकर वो वाली पोस्ट्स जिसमे वो बता रही है की पिछले जनम में भी उसके पति आप थे, या उसके लिए सबसे अच्छा शहर पेरिस है, या उसकी शकल किसी सेलिब्रिटी से मिलती है या वो इस दुनिया में क्यों आयी है । इन सब पोस्ट्स को बराबर like करिये। क्योंकि इनमे वो आपको already टैग तो कर ही चुकी है ।

५ . जब भी कोई फ़िल्म देखने जाओ या किसी मॉल में तफरी ही करने जाओ तो फेसबुक पर चेक-इन करना न भूलें , और हाँ उस चेक-इन में अपनी बीवी को टैग करना तो कतई न भूलें। बता रहा हूँ ये सबसे लोकप्रिय नुस्खा है सामंजस्य बैठाने का।


६ . आप भले ही ५ स्टार होटल या किसी लक्ज़री रेस्टारेंट के बाजू में खड़े होकर पानीपुरी खा रहे हो लकिन फेसबुक पर चेक इन होटल या रेस्टॉरेंट का ही करे।

७ . बजट निकाल के हर साल विदेश नहीं तो कम से कम मनाली, नार्थ-ईस्ट इत्यादि जगहों पर जाकर ढेरो फोटो खिचवा के आये। ज्यादा कहीं नहीं तो महाबलेश्वर या गोवा ही चले जाये। फिर उन फोटोज को साल भर एक एक करके चिपकाते रहिये with the tagline "Golden memories" . ये बहुत प्रभावित करने वाला नुस्खा है।
(लोगो को नहीं अपनी घरवाली को प्रभावित करने वाला नुस्खा )

अरे अरे रुकिए अभी आपके दिमाग में सवाल आया होगा बीवी को हर जगह टैग करके वो खुश कैसे होगी ? तो जनाब  ऐसा है कि बीवी को जब आप ऐसी सुहानी, रोमांटिक और महँगी घटनाओ पर टैग करते हो तो वो वो मैसेज जाता है बीवी की सहेलियों को। और यही तो आपकी बीवी चाहती है।
और वो इतना ही नहीं चाहती, वो यह भी चाहती है की उसके साथ आपकी मुस्कुराती हुयी फोटो लगाने से आपकी भी सखियों तक मैसेज पहुंचे कि आप अपनी बीवी के साथ कितने खुश है।

८  .अगली बात , अपने ज़ेहन में २ तारीखें परमानेंट मार्कर से गोद के रखे एक तो बीवी का जन्मदिन और दूसरा खुद का बलिदान दिवस (शादी की सालगिरह) . जैसे ही सालगिरह आये वैसे ही फिर वही, एक अच्छा सा दार्शनिक सा पोस्ट डाले और अपनी अर्धांगिनी को सालगिरह विश करें। ( फेसबुक पर ही )

 
९  . जब भी आप कुछ महंगा सामान खरीदें खुद के पैसो से खुद के लिए, तो उसको ख़ुशी ख़ुशी इस्तेमाल करने के लिए पहले फेसबुक पर डिक्लेअर करे की यह खूबसूरत तोहफा आपको आपकी beloved wife ने दिया है और आप उसके शुक्रगुजार है। उसको फेसबुक पर ही थैंक यू भी कहें। यह बात हर चीज पर लागू होती है, जी हाँ आप कच्छे बनियान तौलिये को भी गिफ्ट डिक्लेअर कर सकते है।

१०  .  अंतिम बात ,आप अगर राजनीती, खेलकूद, वैश्विक समस्याएं, सामाजिक कुरीतियों या टेक्नोलॉजी से जुडी कोई पोस्ट कर रहे है तो गलती से भी उसमे अपनी बीवी को टैग न करे।  ये सारी बातें एलर्जिक हो सकती है और आप को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते है। लेकिन अगर आप बॉलीवुड या टीवी जगत से जुडी कुछ बात शेयर कर रहे है तो पक्का टैग करे।

और हाँ सबसे बड़ी बात, ये नुस्खे वाली बात अपनी बीवी को कतई न बताये, मेरा नाम लेकर तो बिलकुल नहीं। प्लीज हाथ जोड़कर विनती है।

अभी के लिए इन १० बातो पर अमल करिये, तब तक मैं कुछ और नुस्खे खोज के लाता हूँ।

मजा आये या न आये मेरी इस पोस्ट को लाइक जरूर करना सिर्फ यह जताने के लिए की आप एक भले मानस है। नहीं किया तो काला कुत्ता पीछे पड़ जाये

Thursday 14 April 2016

बाबा साहेब आंबेडकर

बाबा साहेब आंबेडकर की १२6 वीं  जयंती मनाई जा रही है और बड़े धूमधाम से ही मनाई जा रही है। पिछले कुछ दिनों से चंदा उगाही का कारोबार भी चल रहा है। हमारे देश में कोई भी महोत्सव चाहे वो धार्मिक हो, राजनैतिक हो या सामाजिक हो उसकी तैयारी बड़े जोरो शोरो से होती है। "जोर" लगा लगा के चन्दा उगाया जाता और फिर उस चंदे से हाई वोल्टेज DJ वाले बाबुओं से "शोर" करवाया जाता है। ऐसा अमूमन सभी प्रमुख महोत्सवों के दौरान होता है। (सभी मतलब सभी)

हाँ तो हम बात कर रहे थे बाबासाहेब आंबेडकर की १२6 वीं  जयंती की तो सभी राजनैतिक दल, सामाजिक कार्यकर्ता, और दलितों के, पिछड़ो के मसीहा लोग आज के दिन अपने वातानुकूलित ऐशो -आराम छोड़ के १-२ जगह भाषण देंगे, पिछली, मौजूदा और आने वाली सभी सरकारों को गरियाएंगे और घर जाके २-४ पेग मार के सो जायेंगे। ऐसा ही होता आया है बरसो से।



बरसो से हम सब के मन में राजनैतिक दलों ने बाबासाहेब की एक छवि बना दी है की वो दलित नेता थे। बाबासाहेब का योगदान सिर्फ दलितों के उत्थान के लिए ही सिमित था। हमारी भी स्कूली किताबो ने हमे ज्यादा कुछ नहीं पढ़ाया बाबासाहेब के बारे में सिवाए इसके की वो हमारे संविधान के निर्माता थे।

बाबासाहेब आंबेडकर को इतना "सेलिब्रेट" करने वाले भी उनके कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण योगदानों के बारे में शायद ही जानते होंगे। आइए आपको बताता हूँ की "भारत के आज़ाद होने के बाद" बाबासाहेब का क्या क्या योगदान रहा है देश के लिए। (जो वाक्य बोल्ड और रेखांकित है उसका महत्त्व भी आप समझेंगे लेख के अंत में ).

१. RBI को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है, इसकी परिकल्पना बाबासाहेब ने की थी।

२. भारतीय वित्त आयोग जो की भारतीय राज्यों और केंद्र के बिच वित्त प्रबंधन की प्रमुख कड़ी है का गठन भी बाबासाहेब के प्रयासों से हुआ था।

३. संविधान में "हिन्दू कोड बिल" को कानूनी दर्जा दिलाने की जद्दोजहद भी आंबेडकर ने की थी, इस बिल का मकसद महिला सशक्तिकरण, सती प्रथा और दहेज़ प्रथा का उन्मूलन था। अगर यह बिल पास हो जाता तो १९५१ से ही असल "Women Empowerment" की शुरुआत हो जाती। परन्तु ऐसा हो नहीं पाया और २०१४ में राहुल गांधी को "Women Empowerment" शब्द के रट्टे लगाने पड़े।

४. श्रम मंत्री रहते हुए उन्होंने आधिकारिक कामकाज के घंटो को १२ से घटवा के ८ करवाया। (आईटी वालो को तो अब तक अपने बाबासाहेब का इंतजार है )

५. कश्मीर में आर्टिकल ३७०, जिसके बूते पर कईं सरकारे आई और गयी।  इसी आर्टिकल ३७० को पूरी तरह से नकारने का साहस भी बाबासाहेब ने दिखाया था। उन्होंने कश्मीरियों से कहा था की आप चाहते हो की आपकी सीमा सुरक्षा हम करे, आपको आर्थिक सहायता हम दे , आपको आपदा सहायता हम प्रदान करे और आप हमारे कानून नहीं मानेंगे , ऐसा कैसे हो सकता है ? ( हम मतलब भारत सरकार)
किन्तु आज बाबासाहेब के कईं अनुयायी JNU में आर्टिकल ३७० की वकालत करते है और कश्मीर की आज़ादी का बीड़ा उठाये है।

६. नेशनल पावर ग्रिड, राष्ट्रीय सिंचाई योजना जैसी कईं परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में योगदान।
७. बौद्ध धर्म की परिस्थापना और
८. भारत के कईं राष्ट्रिय चिन्हों पर बौद्ध धर्म की छाप भी इन्ही के प्रयासों का परिणाम है।

और भी कईं चीजे मेरी व्यक्तिगत जानकारी के आभाव में छूट गयी है , किन्तु इतनी काफी है इस बात के प्रमाण के लिए की आधुनिक भारत की नींव रखने में उनका अच्छा ख़ासा योगदान रहा है। जिसे राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पिछली सरकारों ने प्रचारित नहीं किया।

उनके इन योगदानों को शायद कोई याद भी नहीं करना चाहता, क्योंकि ये पुरे देश के हित में थे। आजकल देश-हित  की बात करने वालो को "सूडो नेशनलिस्ट", "भक्त" या "संघी" कहा जाता है। और अगर बाबासाहेब के इन सभी योगदानों का जिक्र हो गया तो हंगामा खड़ा हो जायेगा। इसीलिए आजतक उन्हें सिर्फ और सिर्फ संविधान निर्माता और दलितों का नेता ही कहा जाता है।

अब चलते चलते आपको उस बोल्ड और रेखांकित वाक्य के बारे में भी कुछ जानकारी दे देते है। उनके उपरोक्त  सभी योगदान भारत के आज़ाद होने के बाद के थे जब उन्हें संवैधानिक ओहदा प्राप्त हुआ था। आज़ादी के पहले की उनकी सारी लड़ाई दलितों के उत्थान के लिए थी। यहाँ अगर कहा जाये कि उनकी लड़ाई अंग्रेजो के खिलाफ डायरेक्ट कभी नहीं रही तो भी असत्य नहीं होगा । उन्होंने अंग्रेजो से भी हाथ मिलाया था ताकि दलितों को अधिकार मिल सके। उन्हें कुछ हद तक कोई सरोकार नहीं था की देश में सरकार किसकी है। उनकी प्राथमिकता में सिर्फ पिछड़ो को आगे लाना था। कुछ एक मुद्दों पर वो गांधीजी के विरूद्ध भी खड़े हुए थे। उन्ही के प्रभाव के चलते आज़ादी के आंदोलन में दलितों का संगठित योगदान उतना अहम नहीं रहा है जितना हो सकता था।

और जहाँ तक रही बात दलितों के लिए काम करने की तो वो जरूर उन्होंने किया किन्तु अकेले उन्होंने किया ऐसा भी नहीं है। जातीप्रथा के खिलाफ अभियान और कईं रूढ़ियों को खत्म करने के लिए प्रमुख कदम उठाने वालो में जो नाम आते है वो राजाराममोहन राय, रबिन्द्र नाथ टैगोर, केशब चन्द्र सेन जैसे लोग है जो की ब्राह्मण थे। इनके अलावा बॉम्बे प्रार्थना समाज, आर्य समाज, सत्य साधक समाज इत्यादि ने भी सर्व कल्याण और मनुष्यो में समभाव  के लिए काम किया। बाबासाहेब ने एक वोटबैंक जरूर खड़ा किया और आज कईं राजनैतिक पार्टियां उसी वोटबैंक के लालच में "दलित-दलित " चिल्लाती फिर रही है।  आज शायद बाबासाहेब अपनी आँखों से यह सब देख रहे होते तो शायद उन्हें थोड़ा दुःख जरूर पहुँचता।

अगर हमारे पुरखो ने जाती प्रथा का प्रचलन शुरू किया और मनुष्यो को उनके कार्य के अनुसार विभाजित किया तो "Social Equality" की बात करने वाले लोगो ने इन्ही मनुष्यो के बिच बैर और घृणा को जन्म दिया। यह सामाजिक विभाजन अब इतना बढ़ चूका है की हम देश हित के बारे में अब भी नहीं सोच रहे है। अब भी हम सिर्फ हमारी जाती, हमारा धर्म, हमारा समाज इन्ही घेरो में अटके है।

हमारा देश तेज़ी से आगे तो बढ़ा है किन्तु ट्रेडमिल के ऊपर। सालो तक  भागने के बाद उतरे तो पाया की हम तो वहीं खड़े है।


नोट: इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहात करने का कतई नहीं है। हम बाबासाहेब आंबेडकर के कार्यो के लिए उनका भरपूर सम्मान करते है। किन्तु उनके नाम का दुरुपयोग करने वालो के सख्त विरुद्ध है। जिस प्रकार गांधी जी के नाम का भरपूर दुरूपयोग होता आया है वैसा ही कुछ लोग आंबेडकर के साथ करने जा रहे है।
फिर भी दिमाग की जगह अगर किसी का दिल दुखा हो तो लिखित में क्षमा चाहता हूँ और आशा करता हूँ की इस लेख के विरोध में कहीं आग-जनि, बंद या पत्थरबाजी नहीं होगी। धन्यवाद।

Saturday 27 February 2016

भारत की युवाशक्ति


जब से सत्ता संभाली है तभी से हमारे प्रधानमंत्री जी ने दुनियाभर में ढिंढोरा पिट रखा है कि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। भारत का युवा दुनिया बदलने की ताकत रखता है। सारी दुनिया हमारे देश की ओर आशाभरी दृष्टि से देख रही है। और भी न जाने कितनी बातें कही है हमारे प्रधानमंत्री ने हमारी युवा शक्ति के बारे में।

किन्तु बेचारे मोदी जी यह जानने में शायद असफल रहे है की असल में उनकी तथाकथित महान युवा शक्ति कर क्या रही है। हमारे देश में आज की तारिख में मोटे-मोटे तौर पर ५ प्रकार की युवाशक्ति पायी जाती है। मोटे तौर पर इस लिए विभाजित किया क्योंकि इन्ही ५ श्रेणी के युवा तय कर सकते है की देश को किस दिशा में लेके जाना है।

आईये आपको हम बताते है उस युवाशक्ति के बारे में, मोदी जी जिसका प्रचार प्रसार समस्त विश्व में कर रहे है ।

१. बुद्धिजीवी युवाशक्ति :
ये वो युवाशक्ति है जो अपने आपको "रॅशनल" कहते है और हर प्रकार के रूढ़िवादी विश्वास पर प्रश्न करते है। इसी कड़ी में कईं बार वो भूल जाते है की देश का इतिहास क्या रहा है। भूल जाते है की कुछ विश्वास इतने अटल होते है की तथ्यों से परे होते है। ये वो युवा है जिन्हे अपने "ईश्वर" से  ज्यादा भरोसा अपनी बुद्धिमता पर है। यहाँ तक तो सब कुछ अच्छा है, आपको सब ठीक लग रहा होगा। किन्तु यही वो युवा है जो बड़ी आसानी से बहकावे में आता है। यही वो युवा है जो गरीबो के लिए लड़ते लड़ते अचानक से आतंकवादियों के लिए मोर्चा लिया खड़ा पाया जाता है। इस युवाशक्ति के लिए अफजलगुरु और याकूब मेमन जैसे लोग हीरो हो जाते है।यही वो युवा है जो कलम छोड़ कर बन्दूक उठाने की बात करता है। यही वो युवा है जो अंधभक्ति पर सवाल उठाते उठाते देशभक्ति भूल जाता है। यही वो युवा है जो दक्षिणपंथ (राइट विंग) का विरोध करते करते देश का ही विरोध करने लग जाता है।सामंतवाद से लड़ते लड़ते ये अलगाववाद से जुड़ जाते है। ये लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देशविरोधी नारे लगाते है। इस प्रकार की युवाशक्ति हमारे देश में सदियों से रही है किन्तु उन्होंने कभी देश के अपमान में एक शब्द भी नहीं कहा। किन्तु आज कुछ लोगो के बहकावे में आकर यही युवाशक्ति अपने पथ से भटक रही है।





२.सायबर युवाशक्ति:
दूसरी प्रकार का युवा वो है जिसे जमीनी हकीक़त से कोई सरोकार नहीं है। जिसके लिए मीडिआ (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ज्यादातर सोशल मीडिआ ) ही साक्षात ईश्वर है। यह वो युवा है जो सिर्फ इंटरनेट पर देश के लिए लड़ाई लड़ता है। यह वो युवा है जिसे सरकार को गालियां देना फैशन लगता है। यह वो युवा है जो आये दिन देशद्रोही और देशभक्ति का प्रमाणपत्र  बांटता फिर रहा है। सबसे खतरनाक तो इनमे से वो है जिन्हे "लॉजिक" और "तथ्यों" से कोई मतलब नहीं होता। ये वो युवा है जो "टार्ड " और "भक्त" नाम के दो समुदायों में बंट के रह गया है। वैसे इनमे एक तीसरा समुदाय भी है जिसे किसी पार्टी, देश या धरम से कुछ लेना देना नहीं होता। इस समुदाय के लोग सबसे काम हानिकारक भी होते है। ये समुदाय है "एन्जेल-प्रिया" या "मीणा-बॉयज" टाइप फेसबुक अकाउंट धारियों का।


३.आक्रोशी युवाशक्ति:
तीसरी प्रकार की युवाशक्ति वो है जिन्हे बस "आदेश" मिलना चाहिए और वो निकल पड़ते है सडको पर। इस प्रकार के युवा इंटरनेट पर ही लड़ाई नहीं लड़ते अपितु सडको पर खुले-आम बसो को, गाड़ियों को, ट्रको को फूंक डालते है। ट्रेनों को जला कर पटरियां उखाड़ फेंकते है। जब जहाँ जैसा मौका मिले वैसा कुकृत्य करते है और ग्लानि तो दूर इनके माथे पर शिकन तक नहीं आती है। ये वो युवा है जिसे पढ़ना लिखना नहीं है, बाौद्धिक मेहनत इनसे नहीं होती है। इन्हे हर प्रकार की शासकीय सुविधा पर एक ख़ास आरक्षित तथा अप्रतिबंधित अधिकार चाहिए। इन्हे आरक्षण चाहिए। इन्हे उसी "इंफ्रास्ट्रक्चर" के लिए आरक्षण चाहिए जिसे यह आये दिन नुकसान पँहुचाते रहते है।


४.बेचारी युवाशक्ति:
ये वो युवाशक्ति है जो देश को ज्यादा फायदा नहीं तो कोई नुकसान भी नहीं पँहुचाते है । ये मेहनत करते है, पढ़ते है लिखते है। रोजी-रोटी कमाने के लिए दिन रात एक कर देते है। ये वो युवा शक्ति है जो रात-रात भर अपनी "तशरीफ़" रगड़ कर काम करते है और ईमानदारी से पूरा का पूरा इनकम टैक्स भी भरते है। ये वो युवाशक्ति है जो अगर नौकरी न भी मिले तो मायूस होकर आरक्षण के लिए पटरियां नहीं उखाड़ते अपितु उसी स्टेशन पर चाय की टपरी खोल कर अपनी आजीविका चलाते है। इनको कोई मतलब नहीं है आप किस पार्टी को अच्छा मानते है किसे बुरा। इनको कोई मतलब नहीं है अगर किसी ने पैगम्बर को बुरा कहा या दुर्गा माँ को अपशब्द कहे। इन्हे मतलब होता है तो इस बात से की आज इनके यहाँ सब्जी क्या बनेगी, आज बेटे को दूध मिलेगा या नहीं, इस महीने की EMI का बंदोबस्त होगा या नहीं, इस बार अपनी बेटी को एडमिशन दिलवा पाउँगा या नहीं और ऐसी ही तमाम जद्दोजहद में जीवन बीत जाता है इनका।


५ . असल देशभक्त युवा:
यहाँ हम उस युवा शक्ति की बात कर रहे है जो बहुतायत में बिलकुल नहीं पायी जाती है। दुर्लभ किसम की युवा शक्ति है यह। इनके मन में असल देशप्रेम होता है जिसे इन्हे "फेसबुक" या "ट्विट्टर" पर साबित नहीं करना पड़ता। इनका देशप्रेम सर्वविदित होता है, जगज़ाहिर होता है। इनके देशप्रेम से किसी भारतवासी को कोई डर नहीं लगता अपितु दुश्मन देशो के हौसले पस्त हो जाते है इनकी देशप्रेमी के आगे। ये वो युवा शक्ति है जो चोटिल होने के बावजूद मोर्चा नहीं छोड़ते।इन्हे अपनी माँ से ज्यादा फ़िक्र भारत माँ की होती है। ये सामने से आतंकवादियों का सामना कर रहे होते है तो पीछे से अपने ही देश के "पथभ्रष्ट" युवाओ के पत्थरो का शिकार भी हो रहे होते है। ये वो युवाशक्ति है जिसे वन्दे-मातरम कहने या तिरंगे के आगे सर झुकाने में किसी धरम की परिभाषा रोकती नहीं है । ये वो युवाशक्ति है जिसके होने से ही हम है और बाकी के युवा है। उन माताओं को हमारा शत शत नमन है जिन्होंने ऐसे युवाओ को जन्म दिया है।




अब आप ही बताईये हमें किस वर्ग के युवा की सबसे ज्यादा आवश्यकता है और हम कितना और किस श्रेणी में योगदान दे रहे है देश को सुदृढ़ करने में ?

नोट: सभी चित्र इंटरनेट इमेज सर्च के माध्यम से विभिन्न सूत्रों द्वारा साभार संकलित

Tuesday 1 December 2015

असहिष्णुता

दृश्य एक :
स्थान: पुणे
समय-काल  : गणेशोत्सव के आस पास

कहते है की गणेशोत्सव की धूम धाम इस शहर से बढ़कर कहीं  देखने को नहीं मिलती , सच भी है। इस वर्ष भी गणेशोत्सव की तैयारियाँ जोरो शोरो से चल रही है। जोर इस लिए क्योंकि बड़े बड़े ढोल ताशे घंटो उठा के प्रैक्टिस करने में बड़ा जोर लगता है और फिर होने वाला शोर तो वाज़िब है ही । पुणे में गणेश विसर्जन बड़ा खास होता है, भिन्न भिन्न ढोल-ताशा पथक इसके लिए महीनो पहले रियाज़ शुरू करते है और अपनी प्रस्तुति देते है।
इस बार नव-युवा चेतना समूह भी जोर शोर से तैयारी कर रहा है, इस समूह में ६ से  ७० साल तक के सदस्य है। एक ८  साल का बच्चा अपने घर वालो से ज़िद करके अभी अभी इस समूह में दाखिल हुआ है और समूह के सदस्यों ने उसका भव्य स्वागत भी किया।  मात्र ३ दिनों में ही इस बालक ने पुरे समूह का दिल जीत लिया है। अपने अन्य साथियों के साथ वो भी अपने नाजुक कंधो पर भारी ढोल उठा के ताल से ताल मिलाके घंटो प्रैक्टिस करता है।


कईं दिनों की प्रैक्टिस के बाद गणेश विसर्जन के दिन  समूह को अन्य बड़े बड़े ढोल पथको के साथ प्रस्तुति देने का अवसर प्राप्त हुआ । ६ घंटे सतत रूप से ढोल और ताशो के लय ताल से भरे युद्ध में अंततः इस युवा समूह को विजयी घोषित किया जाता है। समूह के सभी बड़े सदस्य छोटे छोटे सदस्यों को अपने कंधे पर उठाकर झूम रहे है। हमारा ८ वर्षीय बालक जो अपने घरवालो से लड़कर इस समूह में शामिल हुआ था वो भी बहुत खुश है। आज उसके माता पिता भी बहुत खुश है यह देख कर की उसे समूह के बाकी लोगो से कितना प्रेम मिल रहा है। J

दृश्य दो:
स्थान: हैदराबाद
समय -काल : रमज़ान का महीना

हैदराबाद की चार मीनार और बिरियानी के अलावा वहां की ओल्ड सिटी में बोली जाने वाली हिंदी भी विश्वप्रसिद्ध है। क्या कहा ? आपने नहीं सुनी वहां की हिंदी ? क्या हौले जैसी बातां करते मियां तुम, तुम हयदेराबाद की हिंदी नको सुने तो क्या सुने जी  ?
चलिए मजाक की बात छोड़िये मुद्दे की बात करते है।
रमज़ान का महीना है, ज्वेलरी की दूकान पर सेठ जी के यहाँ काम करने वालो में ज्यादातर लोग रोज़ा रखते है। जो लोग रोज़ा नहीं रखते वो रोज़ा रखने वालो का ध्यान रखे इस बात का सेठजी पूरा ध्यान रखते है। सेठ जी ने अपने शोरूम के ऊपरी माले में एक कमरा खाली करवाया है। भोजन काल के दौरान रोज़ा न रखने वाले चुपचाप बिना कोई शोर किये उस कमरे में जाके अपना भोजन करके आ जाते है और फिर शाम तक न पानी का और न ही भोजन का कोई जिक्र करते है। शाम होते ही सेठजी अपनी और से इफ्तार के लिए भोजन सामग्री मंगवाकर रोज़ा करने वालो को उसी ऊपरी माले के कमरे में भेजते है जहाँ वो इत्मीनान से अपना रोज़ा खोल सके।


 पुणे वाले किस्से में उस ८ साल के बालक का नाम है  सोहैल  जी हाँ एक मुस्लिम परिवार का बच्चा जो हिन्दुओं के त्यौहार में ढोल बजा रहा था जहाँ  उसे मान सम्मान भी भरपूर मिला।और उसके परिवार ने भी धार्मिक सहनशीलता दिखाते हुए उसे आज़ादी दी अपने मन की करने की।
हैदराबाद की घटना में यह जौहरी सेठ एक हिन्दू है जिन्हे यह भी पता है की इंसानियत भी एक धर्म है। इन्ही सेठ के यहाँ कईं वफादार कारीगर मुस्लिम समुदाय से है और प्रतिवर्ष इनकी दूकान पर ईद और दीवाली समान रुप से मनाई जाती है।

यह किस्से सत्य घटनाओँ से प्रेरित है। ऐसे ही असंख्य किस्से है जो हमारे आस पास बिखरे पड़े है। हम आम लोगो का जीवन बीते कईं वर्षो से इसी प्रकार चल रहा है।किन्तु हमें कभी नहीं लगा की देश में असहनशीलता का वातावरण है। हाँ यह एक राजनैतिक बहस का मुद्दा जरूर हो सकता है किन्तु जरा विचार कीजिये की क्या देश के हीत के लिए ऐसी नकारात्मक बातें फैलाना उचित होगा ? हमें अपने विवेक से भी काम लेना होगा, हम इतने साधन संपन्न भी नहीं है की किसी ने कुछ कहा और देश छोड़ के चले जाएँ।

चलिए अभी इन वास्तविक किस्सों से परे एक काल्पनिक किस्सा सुनाते है।
दृश्य ३
स्थान : आमिर खान का घर,मुंबई
समय-काल : दिसंबर २०१५

३ साल का आज़ाद घर छोड़ने की ज़िद्द लिए बैठा है क्योंकि उसको उसकी माताजी ने डांट दिया है। क्यों ?
क्योंकि अब उसकी शैतानियाँ बर्दाश्त से बाहर है। जब आमिर ने पूछा की बेटा अगर मम्मी ने जरा सा डांट दिया तो इसमें घर छोडनें की क्या जरुरत है ?
मासूम आज़ाद का जवाब सुनिए : "मम्मी को तो किसी ने नहीं डांटा था और वो इंडिया छोड़ने की बात कर रही थी तब तो आपने उन्हें कुछ नहीं कहा और मुझे ज्ञान पेल रहे हो पापा ? हैँ ? "



चित्र: गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से









Monday 5 October 2015

डर लगताहै





कितनी तेज़ है आंधी, न जाने कब यह बूढ़ा पेड़ गिर जाये
मुझे तो धुप में खड़े रहने दो, छाँव से डर लगताहै।

सुना है फिर एक अन्नदाता मर गया भूख से मेरे गांव में
मुझे तो शहर की कोलाहल में ही रहने दो, गांव से डर लगता है।
 
नदियां की बेचैन लहरे, हिचकोले खाती नाव
तैर के पार कर लूंगा , नाव से डर लगताहै।

आज फिर एक निर्दोष मारा गया धरम के नाम पे, शायद चुनाव होने को है कहीं
रहने दो, मत बदलो सरकार को, मुझे अब चुनाव से डर लगता है।

                                                              


Sunday 26 July 2015

बंधन



डिस्क्लेमर/घोषणा/सावधान:
यह पोस्ट थोड़ी गंभीर हो सकती है, हो सकता है की इसमें हास्य का तड़का फीका रहे, यह भी हो सकता है की अंत तक थोड़ी भारी भारी सी लगने लगे; किन्तु विश्वास कीजिये इसे पूरा पढ़ने के बाद आप निस्संदेह प्रसन्नचित्त होंगे।

जैसा की शीर्षक से समझ आता है की यह लेख किसी प्रकार के बंधन या सम्बन्ध पर आधारित है। जी हाँ सबसे महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध या नाता जिसे मानवता का नाता कहते है उसी पर आधारित है यह लेख। इस संसार में हर एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से किसी न किसी तरह जुड़ा हुआ है। भले ही आपस में कोई स्पष्ट सम्बन्ध दिखाई न दे किन्तु हमारा जीवन हर पल किसी न किसी के जीवन को प्रभावित करता है। अगर सिंपल भाषा में बात करू तो हम सब एक दूसरे से किसी न किसी तरह कनेक्टेड है। सुनने में थोड़ा अजीब लगे किन्तु हम इस तरह से जुड़े हुए है की किसी एक इंसान का दर्द हमे तकलीफ दे सकता है और किसी दूसरे कोने में दूसरे इंसान की एक मुस्कान हम सभी को ख़ुशी दे सकती है। और इस बात से आप इंकार नहीं कर सकते की किसी अनजाने इंसान की तकलीफ देखकर आपको जरा भी रंज नहीं होता या किसी मासूम बच्चे की हंसी देखकर आपको जरा भी ख़ुशी का अहसास नहीं होता। निस्संदेह होता ही होगा।

कहने का तात्पर्य यह है की जिस प्रकार किसी और का दुःख हमें दुखी कर सकता है, किसी और की ख़ुशी हमें खुश कर सकती है उसी प्रकार हमारा दुःख भी किसी और को दुखी करने के लिए पर्याप्त है। हम बचपन से ही सुनते-पढ़ते आ रहे है की जैसा बोओगे वैसा काटोगे, जैसी करनी वैसी भरणी या अंग्रेजी में Whatever goes around, comes around. यह चीज हमारे वचन और कर्म पर लागू होती है। हमारे द्वारा बोला गया कटु वचन जो भले ही हमने किसी अपने को बोला हो वो किसी और के जीवन को प्रभावित कर सकता है। इस चीज को समझने के लिए एक उदाहरण लेते है रामायण का, मुझे नहीं पता की आप में से कितनो को यह कहानी पता होगी। किन्तु इस बात को समझने के लिए बही इससे सटीक उदाहरण नहीं मिला।
आप जानते है अपनी पत्नी सीता को राम जी ने रावण के चंगुल से छुड़ाने के उपरांत पुनः परित्याग करते हुए जंगल में छोड़ दिया था। क्यों किया था ऐसा, जानते है आप ? दर-असल राम के राज्य में एक दिन एक शराबी धोबी नशे में धुत्त होकर अपनी पत्नी को सरे-राह पिट रहा था और भला बुरा कह रहा था। नशे में उसने कुछ ऐसे वचन कहे जिन्होंने इतिहास रच दिया। गुस्से और नशे के वश में उस धोबी ने अपनी पत्नी को गालियां देते हुए कहा :
"कुलटा है तू, निकल जा मेरे घर से, मैं राम के जैसा महान नहीं हूँ जो किसी और के पास रहकर आयी अपनी पत्नी को अपना ले। मैं तुझे त्यागता हूँ, मैं अधर्म नहीं कर सकता। एक दूषित नारी को अपने घर में जगह नहीं दे सकता। "

यह वचन इतने प्रभावी सिद्ध हुए की भगवान राम के दरबार तक जब यह बात पहुंची तो उनके पंडित पुरोहितो ने तुरंत उन्हें राजधर्म निभाने की सलाह देते हुए सीता का त्याग करने का आदेश दे दिया। और राम ने राजधर्म को परिवार से बड़ा मानते हुए सीता का त्याग कर दिया।

चित्र गूगल इमेज सर्च से
 
देखा आपने, एक शराबी ने नशे और गुस्से में आकर जो शब्द अपनी पत्नी को कहे वो शब्द सीता के जीवन पर भारी पड़े। कहने को तो एक मामूली सा  धोबी ही था वो जिसका राज-परिवार से कोई रिश्ता नहीं था परन्तु फिर भी वो सीता के जीवन में होने वाले उथल पुथल का कारण बना। इसी प्रकार से हमारे भी वचन अनजाने में पता नहीं किसके जीवन को नुकसान पंहुचा सकते है।इसलिए जो भी बोले सोच समझ कर बोले, कई बार कटु वचन हमारे मन में कुलबुलाते रहते है। ऐसे समय में चुप रहना ही न्यायसंगत होता है।

यह तो  हुयी हमारे द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले शब्दों की बात, इसी प्रकार से हमारे किये हुए कर्मो का असर सिर्फ हमारे जीवन पर ही नहीं होता अपितु समस्त संसार में किसी भी प्राणी के जीवन पर हो सकता है। इसको समझने के लिए हम समकालीन उदहारण लेते है।
मान लीजिये की आज आपने अपने ऑफिस में इतना अच्छा काम किया की शाम को देर तक बैठने की जरुरत नहीं पड़ी। आपका बॉस भी बड़ी ख़ुशी के साथ आज जल्दी घर निकल गया। जल्दी पंहुचा तो बॉस की बीवी बड़ी खुश हुयी और वो दोनों बड़े दिनों बाद बाहर डिनर पर जा सके। पत्नी इतनी खुश थी की बॉस को इस वीकेंड अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने की इजाज़त देदी। वेटर को भी आज ज्यादा टिप मिली। आते आते पड़ौसी के बच्चे के लिए आइसक्रीम खरीद के ले आये तो वो बच्चा भी खुश हो गया। बच्चे को खुश देखकर उसके माँ बाप भी बड़े आनंदित हुए। (आपके जल्दी घर पँहुचने पर जो खुशियाँ आपको मिली होगी उसका हिसाब तो यहाँ हम रख ही नहीं रहे है। )


तो देखा आपने, आपके द्वारा ऑफिस में किया हुआ अच्छा काम कितने लोगो को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर गया। इसी प्रकार से अगर हम वही काम बिगाड़ देते, जिसको सुधारने के लिए देर रात तक आपको और बॉस को ऑफिस में ही बैठना पड़ता तो यह चैन ऑफ़ इवेंट्स बिलकुल उलटे होते।

शायद विज्ञान की भाषा में इसे रिप्पल इफ़ेक्ट की उपाधि दी गयी है किन्तु यह बचपन से सुनते आ रहे उस जुमले का ही विज्ञानी नाम है जिसे हम कहते है Whatever goes around, comes around. या जैसा करोगे वैसा भरोगे।

कल्पना कीजिये की अगर पूरी दुनिया में लोग अपने वचनो और कर्मो से किसी को दुःखी न करे,तो हो सकता है की एक दिन समस्त संसार से दुःखो का नाश हो जाये। हमारे अच्छे वचन और अच्छे कर्म हमे ही नहीं अपितु पुरे संसार को सुख देने की क्षमता रखते है।

अगर हम इस समाज के भले के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम इतना तो कर ही सकते है की निश्चय करले की कटु शब्दों और घृणा से भरे वचनो का प्रयोग करने से बचेंगे और प्रयत्न करेंगे की कभी हमारे शब्द या कर्मो से किसी को कष्ट न पहुंचे।

ध्यान रखने वाली बात यह भी है की यह कर्म और वचन ऑनलाइन क्रीड़ाओं पर ज्यादा लागू होता है , क्योंकि आजकल प्रत्यक्ष जीवन में तो इतना हम किसी से मिलते जुलते नहीं जितनी बाते सोशल मिडिया पर करते है।
कोशिश करे की किसी घृणा से भरी पोस्ट को आगे बढ़ने से रोके और खुद तो ऐसे पोस्ट कदापि न डाले।

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नोट : ऊपर कही गयी बातों को अंग्रेजी में विज्ञान के लहजे में समझने के लिए Google सर्च करे "Ripple Effect" और "Butterfly effect".









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